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“चादर खींचो ना, ठण्ड लग जायेगी”

My Poetry My Words
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चादर खींचो ना, ठण्ड लग जायेगी
बर्फीली सी हवाओ में नींद जग जायेगी ।।
है पथ ये खटिया,
ना बिस्तर ना तकिया
आसमानी सी रोशनी में,
सोती ना अखिया
अजीब सी ये सहर देखो कहा तक जायेगी,
चादर खींचो ना, ठण्ड लग जायेगी ।।
ओढ़ो थोड़ी, बाकी का हमे सहारा
है एक ही जोड़ी, पर बटता दो किनारा
सुहानी सी ये रात क्या लड़ाई कर थक जायेगी,
चादर खींचो ना, ठण्ड लग जायेगी ।।
आये क्यो साथ मे,
जब देना था दगा
ये जंगल है मेरे भाई,
यहा कोई ना तेरा सगा
सो जाओ अब चैन से, नही सुबह उग जायेगी,
चादर खींचो ना, ठण्ड लग जायेगी ।।
-सुधांशु शर्मा

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